मंझे मंझाये चुनाव रणनीतिकार से उभरते नेता बने प्रशांत किशोर के तीन रूप अब तक सामने आ चुके हैं. सबसे नया रूप बीपीएससी अभ्यर्थियों के आंदोलन में देखने को मिला है, जिसमें वो कंबल देने के बदले उनके सपोर्ट के लिए धमाकाते देखे जा रहे हैं. सफाई देना, और मोर्चे पर फिर से डट जाने की बात अलग है जो राजनीति के बेस्ट-प्रैक्टिसेज में पहले से ही शामिल है.
एक रूप तो वो है जिसमें प्रशांत किशोर देश की राजनीति में बेहतरीन चुनाव रणनीतिकार के तौर पर अपनी काबिलियत साबित कर चुके हैं. पहले भी, और हाल के बिहार उपचुनावों में अपने उम्मीदवार उतारकर फिर से साबित किया है. भुजाओं में अभी जंग नहीं लगे हैं, ऐसा संकेत दिया है.
जनसुराज मुहिम के दौरान भी प्रशांत किशोर का एक नया रूप देखने को मिला है, जिसमें वो लोगों के बीच पहुंचते हैं. शिक्षा और रोजगार की बात करते हैं. लगे हाथ ये भी समझाने की कोशिश करते देखे गये कि, क्यों बिहार के नौजवानों को रोजी रोटी के लिए बाहर नहीं जाना चाहिये – और आश्वस्त भी किया कि अगर 2025 कि बिहार चुनाव के बाद जन सुराज की सरकार बनी तो छठ में छुट्टी पर आये युवाओं को फिर से काम के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
लेकिन कुशल राजनीतिज्ञ बनना, और बात-व्यवहार में परिपक्वता लाना, ये सब अभी बहुत दूर लग रहा है – कंबल देकर एहसान जताने वाला प्रशांत किशोर का बयान यही कमजोरी दिखा रहा है.
1. प्रशांत किशोर की राजनीति का मकसद अब भी अस्पष्ट है