मल्हारगढ़ पंडित दीनदयाल उपाध्याय बालोद्यान: विकास के दावों की पोल खोलता बदहाल बगीचा
बालोद्यान में प्रज्ञा प्रेग्नेंसी टेस्ट किट के अवशेष, शराबियों की महफिल और टूटी फूटी झूले, क्या यही है विकास?
मल्हारगढ़ / कभी जहां बच्चों की खिलखिलाहट गूंजती थी, जहां सुबह की ताज़ी हवा में बुजुर्ग और युवा अपनी सेहत बनाने आते थे, वहीं आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय बालोद्यान अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। नगर परिषद की बेरुखी और अनदेखी ने इस हरे-भरे बगीचे को खंडहर में तब्दील कर दिया है।
बगीचे की दुर्दशा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां अब कसरत करने वाले लोग नहीं, बल्कि शराब के नशे में धुत्त लोग नज़र आते हैं। शाम ढलते ही असामाजिक तत्व यहां जाम छलकाने लगते हैं, और सुबह तक शराब की खाली बोतलें व बारदाने जगह-जगह बिखरे मिलते हैं।
और तो और, प्रेमी जोड़ों के लिए यह बगीचा अब सुरक्षित एकांत स्थल बन चुका है। स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि बगीचे में प्रज्ञा प्रेग्नेंसी टेस्ट किट के अवशेष तक देखे जा सकते हैं, जो इस सार्वजनिक स्थल की बिगड़ती स्थिति को दर्शाने के लिए काफी हैं।
बदलाव का इंतजार कर रहा बगीचा
इस बगीचे में बच्चों के लिए लगाए गए झूले और चकरियाँ जंग लगने से टूट चुकी हैं। जिन पेड़-पौधों को कभी बड़े जतन से लगाया गया था, वे अब पानी के अभाव में सूख रहे हैं। बगीचे के बीचोंबीच बनी फाउंटेन की बाउंड्री को असामाजिक तत्वों ने तहस-नहस कर दिया है, और भगवान शिव की प्रतिमा अब रंग-रोगन के इंतजार में है।
बड़ी बात यह है कि नगर परिषद ने इस बगीचे में सुधार कार्य शुरू किया था, लेकिन फिर अचानक रोक दिया गया। नगर परिषद के सीएमओं राजेश गुप्ता का कहना है कि यहां अस्पताल बनने की योजना है, इसलिए काम रोक दिया गया। लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर अस्पताल भी बनता है तो यह बगीचा मरीजों और उनके परिजनों के लिए राहत की जगह बन सकता है।
चुनावी वादे और हकीकत
तत्कालीन मंत्री और वर्तमान उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा ने चुनाव से पहले यहां सिविल हॉस्पिटल की घोषणा कर भूमिपूजन किया था, लेकिन अब तक कोई काम शुरू नहीं हुआ है। नगर के अन्य हिस्सों में करोड़ों रुपये के विकास कार्य हो रहे हैं, तो फिर इस बगीचे की अनदेखी क्यों?
अगर नगर परिषद थोड़ी भी गंभीरता दिखाए और लाखों रुपये की लागत से मरम्मत कार्य शुरू करे, तो इस बगीचे की तस्वीर बदल सकती है। एक बार फिर बच्चों की हंसी-ठिठोली, बुजुर्गों की बातचीत और परिवारों की चहल-पहल इस बगीचे को जीवंत बना सकती है।
अब देखना यह है कि प्रशासन इस बगीचे को संवारने के लिए कब कदम उठाता है या इसे यूं ही खंडहर बनने के लिए छोड़ दिया जाएगा?